WO SHAHRE MOHABBAT JAHAN MUSTAFA HAIN LYRICS

 

WO SHAHRE MOHABBAT JAHAN MUSTAFA HAIN LYRICS


WO SHAHRE MOHABBAT JAHAN MUSTAFA HAIN LYRICS

 

اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَّعَلٰٓی اٰلِ مُحَمَّدٍ کَمَا صَلَّیْتَ عَلٰٓی اِبْرَاھِیْمَ وَعَلٰٓی اٰلِ اِبْرَاھِیْمَ اِنَّکَ حَمِیْدٌ مَّجِیْدٌ

اَللّٰھُمَّ بَارِکْ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَّعَلٰٓی اٰلِ مُحَمَّدٍ کَمَا بَارَکْتَ عَلٰٓی اِبْرَاھِیْمَ وَعَلٰٓی اٰلِ اِبْرَاھِیْمَ اِنَّکَ حَمِیْدٌ مَّجِیْدٌ


Woh Sahre Mohabbat Jahan Mustafa Hai
Wohi Ghar Banane Ko Jee Chahta Hai
Woh Sone Se Kankar Woh Sone Si Mitti
Nazar Mein Basane Ko Dil Chahta Hai

Jo Poocha Nabi Ne Ke Kuch Ghar Bhi Choda
Toh Siddique Akbar Ke Honto Pe Aaya
Waha Maal O Daulat Ki Kya Hai Haqiqat
Jahan Jaan Lootana Ko Dil Chahta Hai

Woh Nanha Sa Asgar Woh Aedi Ragad Kar
Yehi Kah Raha Hai Woh Kheme Mein Rokar
Aye Baba Main Pani Ka Pyasa Nahi Hun
Mera Sar Katane Ko Dil Chahta Hai

Sitaron Se Yeh Chaand Kehta Hai Har Dum
Tumhe Kya Bataye Woh Tukdo Ka Aalam
Ishare Mein Aaqa Ke Itne Maza Tha
Ke Phir Toot Jane Ko Dil Chahta Hai

Hindi...👇
वो शहरे मुहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं              वहीं घर बनाने को दिल चाहता है
वो सोने से कंकर, वो चाँदी सी मिट्टी.   नज़र में बसाने को दिल चाहता है
वो शहरे मुहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं.             वहीं घर बनाने को दिल चाहता है
जो पूछा नबी ने के कुछ घर भी छोड़ा.       तो सिद्दीके अकबर के होंटो पे आया
वहाँ मालो दौलत कि क्या है हक़ीक़तजहाँ जाँ लुटाने को दिल चाहता है
वो शहरे मुहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं.             वहीं घर बनाने को दिल चाहता है
जिहादे मुहब्बत की आवाज़ गूंजीं.           कहा हनज़ला ने ये दुल्हन से अपनी
इज़ाज़त अगर दो तो जाम-ए-शहादतलबों से लगाने को दिल चाहता है
वो शहरे मुहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं.             वहीं घर बनाने को दिल चाहता है
वो नन्हा सा असगर वो ऐड़ी रगड़ कर.   यही कह रहा है वो ख़ैमे में रो कर
ए बाबा! मैं पानी का पियासा नही हूँ.       मेरा सर कटाने को दिल चाहता है
वो शहरे मुहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं.             वहीं घर बनाने को दिल चाहता है
सितारों से ये चाँद कहता है हर दम.         तुम्हे क्या पता है वो टुकड़ों का आलम
इशारे में आक़ा के इतना मज़ा था.                के फिर टूट जाने को दिल चाहता है
वो शहरे मुहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं.             वहीं घर बनाने को दिल चाहता है
जो देखा है रुए जमाले रिसालत.                  तो ताहिर! उमर मुस्तफ़ा से ये बोले
बड़ी आप से दुश्मनी थी मगर अब.     ग़ुलामी में आने को दिल चाहता है
वो शहरे मुहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं.             वहीं घर बनाने को दिल चाहता है

Comments

Popular posts from this blog

हस्बी रब्बी जल्लल्लाह | तेरे सदक़े में आक़ा सारे जहाँ को दीन मिला / Hasbi Rabbi Jallallah | Tere Sadqe Mein Aaqa Sare Jahan Ko Deen Mila